हर दिल अज़ीज़ थे राहत इंदौरी (Rahat Indori - A Great Shayar, Lyricist & Lovely Person)
1 जनवरी 1950 को इंदौर के एक गरीब घर में पैदा हुए डॉ राहत इंदौरी(Dr. Rahat Indori) साहब का आज 11 अगस्त 2020 को अचानक हृदय गति के रूक जाने से हुई मृत्यु से देश के साहित्य और उर्दू काव्य को पसंद करने वाले लोग हतप्रभ और दुखी है। वो कोरोना से भी ग्रसित थे और इंदौर के ही एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। अगर हिंदी काव्य में मेरी रुचि डॉ कुमार विश्वास(Dr. Kumar Vishwas) के कारण हुई तो उर्दू शायरी में दिलचस्पी का कारण सिर्फ और सिर्फ डॉ राहत इंदौरी(Dr. Rahat Indori) साहेब थे। स्कूल के समय से ही इनको सुनता चला आ रहा था। पहले व्हाट्सप्प के ऑडियो में उनको सुना और फिर जब यूट्यूब पे सर्च किया तो लगा कोई शायरी नहीं कह रहा है जैसे दिल की बात को लफ़्ज़ों में बयां कर रहा है। एक समय तो ऐसा भी आया जब राहत साहेब(Dr. Rahat Indori) की मुशायरों की वीडियो देखे बिना नींद नहीं आती थी।
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर,
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं।
इंदौर के गलियों से निकला यह शख्स हिंदोस्तान के साथ साथ पूरी दुनिया में अपने हुनर और साहित्यिक कुशलता का ऐलान करते हुए भी इतना सच्चा और ज़मीन से जुड़ा कैसे रह सकता है यकीं नहीं होता। शब्दों से खेलना तो जैसे राहत(Dr. Rahat Indori) साहेब का काम ही था। बकौल उनके शब्दों में -
अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए,
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए।
हर उम्र के लोगों के लिए राहत(Dr. Rahat Indori) साहब के पास कुछ ना कुछ जरूर होता था। नवजवानों के नब्ज को वे बहुत अच्छे से जानते थे। उनके मुशायरों में एक बहुत बड़ा हिस्सा नवजवानों का भी होता था जिसे वो कभी निराश नहीं करते थे।
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो,
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है।
इश्क़ को शायरी से और शायरी को युवाओं को जोड़ने का काम राहत(Dr. Rahat Indori) साहब से बखूबी किया। युवाओं के जज़्बात को राहत साहेब बहुत अच्छे से समझते थे। इनके मुशायरों और कवि सम्मेलनों में वन्स मोर वन्स मोर का उद्घोष अकारण ही नहीं होता था। हर कोई राहत साहेब के शायरी में खो सा जाता है।
किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है,
आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है।
मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए,
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूं हैं।
देश प्रेम में राहत(Dr. Rahat Indori) साहब का कोई जोड़ नहीं था। उनकी शायरी का एक बड़ा हिस्सा अपने वतन और अपनी मिट्टी को समर्पित था। मातृभूमि को प्यार करना कोई राहत साहेब से सीखे।
मैं जब मर जाऊं, मेरी अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना।
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है,
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं।
जिंदगी के बहुआयाम को राहत साहेब से बहुत अच्छे से अनुभव किया था । परेशानियों से कैसे सामना करना है और जिंदगी के सुख और दुख जैसे सारे पहलुओं का सामना कैसे करना है राहत(Dr. Rahat Indori) साहेब से अपने शब्दों में बहुत खूबसूरती से बयां किया है -
तूफानों से आंख मिलाओं, सैलाबों पर वार करो,
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो।
दो गज़ सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है ,
ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया।
हिंदुस्तान के राजनीति और हालत पे राहत साहेब का पे कटाक्ष भी बहुत काबिलेगौर है। समाज में एकता की ज़रूरत को न सिर्फ उन्होंने अच्छे से समझा बल्कि आवाम को जागरूक भी किया है।
लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में,
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है।
सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।
डॉ राहत इंदौरी(Dr. Rahat Indori) साहब का यूँ अचानक से इस दुनिया से चले जाना उर्दू शायरी और भारतीय साहित्य के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है। उनके जाने से मुशायरों और कवि सम्मेलनों में एक बहुत बड़ा खालीपन आ गया है जिसको भरना हर किसी के बस की बात नहीं। राहत साहब हर दिल अज़ीज़ थे और हमेशा रहेंगे। उनके बोले गए एक एक लफ्ज़ और उनका अद्भुत व्यक्तित्व हमेशा हम सब के दिलों पर राज़ करता रहेगा।
यूं तो सारी दुनिया के थे,
बस कहने को इंदौरी थे।
विनम्र श्रद्धांजलि।
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